मुझे इस उत्कृष्ट जीवन ,एक प्रभावशाली और विनोदी व्यक्तित्व से परिचित कराने के लिए माता-पिता व ईश्वर का धन्यवाद। अपने माता-पिता को खोने के बाद उनके कहे शब्दों को अब मैं उनका अक्षरशः पाठ करती हूं। मैंने सोचा कि मैं भी इन खूबसूरत विचारों को आप सभी के साथ साझा करूं। मुझे यकीन है कि आप उन्हें पसंद करेंगे भले ही आपने उन्हें पहले ही सुना हो या नहीं। उनके शब्दों को बांधने का एक छोटा सा प्रयास किया है..
"जब जेब खाली हो साथ ही लोगो की दुत्कार हो , जब पेट में भूख हो उसपर सिर पर छत न हो ,तब सब ज्ञान मात्र शब्द होता है। जब माँ बीमारी से जूझ रही हो ,पिता दो वक्त की रोटी के लिए एड़िया रगड़ रहे हो ,तब सब ज्ञान मात्र शब्द होते है।'' ( जब जिंदगी बीत गई तब पता चला )
''उनके कलम में जादू था ,उनके जहन में फर्ज का जज़्बा था। गर कदम भी उठे तो , काल का सीना भी थर्राता था।। सिर झुककर आँखें नाम कर ,यूँ इस शहादत को कमतर न कर । कर सके तो वतन के लिए एक नहीं , कई और क्रांतिकारी पैदा कर।। '' ( जब भी वतन की बात आती थी तो उनके शब्द यही हुआ करते थे )
''अब कोई गीत नहीं , जो उनको शब्दो में बांध सके , अब कोई कलम नहीं , जो उनके किए को सँवार सके । अब वो आँगन कब हंसेगा , जिसको आपने हंसा गए, अब तो बस वो देहलीज मात्र है, जहां आपके कदम थे।।'' ( माँ -बाबा को अश्रुपूरित श्रद्धांजलि )
आपने अपने जीवन में घटित अंश को शब्दों में बहुत सुंदरता के साथ रखा है इसके लिए साधुवाद ...लेखनी के नूतन मार्ग पर उज्जवल भविष्य की शुभकामनाएं
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार
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